उत्तर प्रदेश प्रीमियर लीग में कानपुर की उपेक्षा दुर्भाग्यपूर्ण
कानपुर प्रीमियर लीग ने जिस स्तर की क्रिकेट प्रतिभा सामने रखी, उसे अनदेखा किया जाना उत्तर प्रदेश क्रिकेट के लिए चिंतन का विषय
उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (UPCA) द्वारा आयोजित उत्तर प्रदेश प्रीमियर क्रिकेट लीग की नीलामी में कानपुर के खिलाड़ियों की उपेक्षा ने राज्य के क्रिकेट जगत में कई प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। यह वही कानपुर है, जहां हाल ही में आयोजित कानपुर प्रीमियर लीग (KPL) ने न केवल जिले बल्कि समूचे राज्य में क्रिकेट को नई दिशा दी। फिर भी, इस नीलामी में कानपुर के 32 नामांकित प्रतिभाशाली खिलाड़ियों में से केवल दो खिलाड़ियों को अवसर मिलना स्पष्टतः पक्षपात का संकेत देता है।
नीलामी में जिन चार खिलाड़ियों का चयन हुआ, उनमें से उपेंद्र यादव और अलमास शौकत जैसे अनुभवी रणजी खिलाड़ी पहले से ही राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हैं। नए चेहरों में सिर्फ निशांत गौड़ और सौभाग्य मिश्रा को शामिल किया गया। शेष खिलाड़ियों — जिनमें सार्थक लोहिया, अभिनव शर्मा, प्रशांत अवस्थी, प्रियांशु पांडे, ध्रुव प्रताप सिंह, अंकुर पंवार, फैज़ अहमद, सत्यम पांडे, दिव्य प्रकाश समेत कई नाम सम्मिलित हैं को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया।
यह तब और अधिक खेदजनक हो जाता है जब कानपुर प्रीमियर लीग के आयोजन ने जिला स्तर पर क्रिकेट को राष्ट्रीय स्तर का मंच प्रदान किया। डॉ. संजय कपूर के नेतृत्व में कानपुर क्रिकेट एसोसिएशन ने ग्रीन पार्क जैसे प्रतिष्ठित स्टेडियम में एक अत्यंत सफल आयोजन कर पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर चेतन शर्मा जैसे दिग्गजों से भी सराहना प्राप्त की। यह प्रतियोगिता खिलाड़ियों के लिए केवल एक टूर्नामेंट नहीं, बल्कि संभावनाओं का द्वार थी — जहां नए नाम उभरे और उत्कृष्ट प्रदर्शन ने नई उम्मीदें जगाईं।
दुर्भाग्यवश, इन खिलाड़ियों की प्रतिभा को उत्तर प्रदेश प्रीमियर लीग की चयन प्रक्रिया में वह सम्मान नहीं मिल सका, जिसके वे वास्तविक हकदार थे। क्या यह मान लिया जाए कि जिस मंच ने प्रदेश की सीमाओं को लांघकर राष्ट्रीय स्तर पर कानपुर को सम्मान दिलाया, वही आज असंगत राजनीति या आंतरिक मतभेदों की भेंट चढ़ रहा है?
समस्या का मूल प्रश्न
यदि चयन योग्यता, प्रदर्शन और प्रतिभा के बजाय व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों और अंदरूनी राजनीति पर आधारित होगा, तो यह न केवल खिलाड़ियों के मनोबल को ठेस पहुंचाएगा, बल्कि समूचे उत्तर प्रदेश क्रिकेट की साख को भी क्षति पहुंचाएगा। युवा खिलाड़ियों में यह संदेश जाएगा कि मेहनत और उत्कृष्टता के स्थान पर संबंध और दबाव की भूमिका अधिक प्रभावी है — जो किसी भी खेल संस्कृति के लिए घातक है।
किन्तु विश्वास अभी शेष है…
कानपुर ने सदैव क्रिकेट को ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। एक समय था जब रणजी ट्रॉफी टीम में कानपुर के 8 से 9 खिलाड़ी नियमित रूप से चुने जाते थे। आज भी कानपुर की धरती पर वह समर्पण, परिश्रम और प्रतिभा जीवित है। यही विश्वास है कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन को कानपुर के खिलाड़ियों की अनदेखी करने का कोई विकल्प नहीं बचेगा।
✒️पूर्व क्रिकेटर संजय दीक्षित की कलम से