एशिया कप में जीत की खुशी, लेकिन जिस तरह हारा श्रीलंका उसने क्रिकेट पंडितों को भी किया निराश

 

 

  • ऐसे फाइनल ने चैम्पियन बनने का मजा किया किरकिरा
  • खिताबी मुकाबला महज 21.3 ओवर में हो गया खत्म
  • कई क्रिकेट प्रेमी तो हाथ मलते रहे गए लाइव मैच देखने से
  • पुराने क्रिकेट खिलाड़ियों ने उठाए श्रीलंकाई बल्लेबाजों पर सवाल
  • विकेट ऐसा नहीं था जिस पर बल्लेबाजी न की जा सके
  • मोहम्मद सिराज की धारदार गेंदबाजी की जमकर हुई तारीफ

अशोक सिंह
कानपुर। एशिया कप में भारतीय टीम भले ही श्रीलंका को एकतरफा मुकाबले में रौंदकर चैम्पियन बन गई, लेकिन जिस तरह श्रीलंकाई टीम ने सरेंडर किया, उससे क्रिकेट प्रेमी खुश नहीं हैं। श्रीलंकाई बल्लेबाजों ने एक तरह से मोहम्मद सिराज की धारदार गेंदबाजी के आगे अपने हथियार डालकर आत्मसमर्पण कर दिया। उनमें संघर्ष का जज्बा दिखाई ही नहीं दिया। खासकर कानपुर के उन सीनियर खिलाड़ियों को यह बात ज्यादा नागवार लगी जिन्होंने क्रिकेट खेलने में अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण साल दिए।
एशिया कप का फाइनल मुकाबला महज 21.3 ओवरों में खत्म हो जाए तो क्रिकेट प्रेमियों को खराब लगेगा ही। खिताबी मुकाबले में मोहम्मद सिराज ने ऐसा घातक स्पैल डाला कि श्रीलंका टीम की पूरी कमर ही टूट गई। रही सही कसर हार्दिक पांड्या ने पूरी कर दी। 15.2 ओवर में श्रीलंका टीम पवेलियन लौट गई। स्कोर बोर्ड पर महज 50 रन ही टंगे थे। जवाब में भारतीय टीम ने महज 6.1 ओवर में ताबड़तोड़ बल्लेबाजी करके एशिया कप में आठवीं बार चैम्पियन बनने का गौरव हासिल कर लिया। भारतीय टीम के साथ देशवासियों ने इसका जमकर जश्न भी मनाया, लेकिन उन्हें मलाल रहा। फाइनल जैसा मुकाबला देखने को नहीं मिला।

नहीं दिखाया विकेट पर रुकने का जज्बा
मोहम्मद सिराज की शानदार गेंदबाजी की चौतरफा तारीफ हो रही है। उन्होंने जिस ढंग से गेंद को स्विंग कराया। गेंद को आगे पिच कराकर बल्लेबाज को खेलने के लिए मजबूर किया, इसी का नतीजा था उनकी झोली में छह विकेट आए। भारतीय टीम को चैम्पियन बनने की राह आसान कर दी। श्रीलंकाई बल्लेबाज पिच को ज्यादा दोष नहीं दे सकते हैं। पिच से गेंदबाजों को थोड़ी मदद जरूर मिल रही थी लेकिन वह कतई ऐसी नहीं थी जिस पर बल्लेबाजी न की जा सके। कानपुर और यूपी के कई सीनियर खिलाड़ियों का कहना था कि उन्होंने अपने जीवन में कई बार लो स्कोरिंग मैच देखें हैं। कोई भी टीम महत्वपूर्ण टूर्नामेंट का फाइनल खेल रही हो, उसके बल्लेबाज विकेट पर रुकना नहीं चाह रहे हों ऐसा कभी नहीं देखा। जब भी किसी भी टीम का टाप आर्डर फ्लाप होता है तो कोई न कोई बल्लेबाज अपनी जिम्मेदारी समझकर विकेट पर रुकने का इरादा करके बल्लेबाजा करता है। पर एशिया कप के फाइनल में श्रीलंका का कोई भी बल्लेबाज ऐसा करता नजर नहीं आया। उन्हें रन बनाने की जगह विकेट पर डटकर खड़े रहने की ज्यादा जरूरत थी। शायद वे ऐसा करते तो स्कोर बोर्ड पर कुछ ज्यादा रन नजर आते और मुकाबला थोड़ा रोमांचक भी हो सकता था। पर अब इस पर बात ही की जा सकती है, जो हो गया वह अब इतिहास का हिस्सा बन गया है।

तकनीक पर ध्यान दें युवा खिलाड़ी 
वहीं, ऐसे भी लोग मिले जो शाम को आराम से बैठकर मैच का आनन्द लेना चाहते थे, लेकिन उन्होंने शाम को जब टीवी खोला तब तक तो भारत चैम्पियन बन चुका था। वे लाइव मैच खेलने से वंचित रह गए। एशिया कप में श्रीलंका के लचर प्रदर्शन के साथ ही फिर से क्रिकेट बदलते स्वरूप को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। कई पुराने क्रिकेट प्रेमियों का मानना है कि क्रिकेट के छोटे प्रारूप पर अब खिलाड़ियों का फोकस ज्यादा हो गया है। क्रिकेट बोर्ड का भी पूरा ध्यान शायद इसी प्रारूप पर है। तभी तो हम लोग देखते हैं कि टी-20 मुकाबले में स्कोर दो सौ के पार पहुंचने लगा है। वहीं टेस्ट मैच अगर विकेट पर थोड़ी सी भी मदद गेंदबाजों को मिली तो टीमों को पारियों में दो सौ रन बनाने में पसीने छूट जाते हैं। सीनियर खिलाड़ियों का मानना है कि आजकल नए खिलाड़ी तकनीकि से ज्यादा पावर पर भरोसा करते हैं। वे हर गेंद पर चौका और छक्का लगाना चाहते हैं। ऐसा हर बार नहीं हो सकता है। इस बात का ध्यान रखकर खिलाड़ियों को अपनी तकनीक पर भी ध्यान देना चाहिए।

लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं

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