यूपीसीए के निदेशकों की मनमानी के खिलाफ फिर मुखर हुए सुर, बोर्ड सचिव से की गई बर्खास्तगी की मांग

 

 

 

  • उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के निदेशकों को हटाने की मुहिम ने पकड़ी फिर से गति
  • लोढ़ा समिति की सिफारिशों की अवहेलना पर लोकायुक्त और बीसीसीआई सचिव से की गई शिकायत
  • शिकायतकर्ता प्रदीप सिंह ने कारपोरेट मन्त्रालय को भी भेजा शिकायत से जुड़ा पत्र और मेल 

कानपुर। उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के सदस्यों और पदाधिकारियों के साथ ही निदेशकों की ओर से की जा रही मनमानी के खिलाफ और अब और मुखर होने लगे हैं। उनकी बर्खास्तगी को लेकर अब एक बार फिर से मांग उठने लगी है।शिकायतकर्ताओं ने बीसीसीआई के लोकायुक्त के साथ ही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड सचिव से संघ में 9 साल पूरे कर चुके लोगों को तत्काल प्रभाव से हटाने की मांग दोहरायी है। निदेशकों के खिलाफ शिकायतकर्ता प्रदीप सिंह ने बीसीसीआई के अध्यक्ष सचिव और लोकायुक्त के साथ ही कारपोरेट मन्त्रालय को पत्र और मेल के माध्यम से यह शिकायत भी दर्ज कराई है कि संघ लोढ़ा समिति और बीसीसीआई के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना करने से बाज नहीं आ रहा है। शिकायत करने वालों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित लोढ़ा समिति की सिफारिश पर प्रदेश क्रिकेट संघ की ओर से अमल न किए जाने पर भी चिंता जताई है। उन्होंने पत्र में यह साफ तौर पर लिखा है कि साल 2014 में नियुक्त निदेशक अपने 9 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। तब भी वह अपने पद पर कायम है और सभी तरह के कार्यों में भी लिप्त हैं। उन्हें तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करने के लिए बोर्ड को उचित कदम उठाने जाना चाहिए ताकि क्रिकेट संघ में पारदर्शिता बनी रहे।

नियमों का दिया हवाला

मेल को जारी रखते हुए, ध्यान में लाया गया है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 07 अगस्त 2018 को 2014 के सिविल रिट 4235 में अपने रिपोर्ट योग्य आदेश में पृष्ठ संख्या 25 पर स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि स्पष्टीकरण आदेश का मतलब यह है कि यदि किसी पदाधिकारी ने बी.सी.सी.आई. में किसी भी पद पर नौ वर्ष पूरे कर लिए हैं, तो वह बी.सी.सी.आई. का पदाधिकारी बनने के लिए अयोग्य हो जाएगा। इसी तरह, यदि कोई व्यक्ति पद धारण करता है तो नौ साल तक किसी भी राज्य संघ के लिए किसी भी क्षमता में पदाधिकारी का पद, वह राज्य संघ के किसी भी पद या पद पर चुनाव लड़ने या धारण करने के लिए अयोग्य माना जाएगा। यदि किसी व्यक्ति ने नौ वर्ष की अवधि के लिए राज्य संघ के संबंध में पदाधिकारी का पद धारण किया है, तो वह बी.सी.सी.आई. के पदाधिकारी पद के लिए चुनाव लड़ने के लिए योग्य नहीं होगा। शिकायत करने वालों ने सुप्रीम कोर्ट और बीसीसीआई से यह उम्मीद जताई है कि अगर निदेशकों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जाएगी और राजीव शुक्ला और युद्धवीर सिंह, अभिषेक सिंघानिया, अशोक चतुर्वेदी, ताहिर हसन और प्रेम मनोहर गुप्ता को उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ से बर्खास्त कर दिया जाएगा जिससे नए लोगों को मौका मिलेगा और पारदर्शिता बनी रहेगी।यूपीसीए (स्टेट एसोसिएशन ऑफ यूपी) में 9 साल पूरे किए। कृपया एमसीए रिकॉर्ड देखें क्योंकि यह कंपनी अधिनियम में पंजीकृत है। गौर तलब है कि बीसीसीआई और यूपीसीए के नियम और विनियम माननीय सुप्रीम कोर्ट के 2014 के सिविल रिट 4235 दिनांक 07 अगस्त 2018 के रिपोर्ट योग्य आदेश के आधार पर बनाए गए हैं और इसका उल्लेख बीसीसीआई और यूपीसीए एमओए/एओए में भी किया है।

नए लोगों को मिले मौका

शिकायतकर्ता प्रदीप सिंह ने बोर्ड और सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि जब यूपीसीए के निदेशक लोढा समिति की सिफारिशों का उल्लंघन पूरी तरह से करते आ रहे है तो क्यों न बीसीसीआई उस निदेशक मण्डल जो कि अपना 9 साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं उन्हे बर्खास्त कर नए निदेशकों को नियुक्त करने का निर्देश करें जिससे चली आ रही भ्रष्ट नीतियों का समापन और सुप्रीम कोर्ट का सम्मा्न हो सके। वहीं दूसरी ओर संघ के सचिव ने कहा कि उन्हे शिकायती मेल के बारे में पूरी जानकारी नही है। उन्होंने कहा कि निदेशक ही संघ के असली मालिक है और वह अपनी मर्जी से रिटायर हो सकते हैं उन्हे हटाया नही जा सकता।

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