यूपीसीए में फिर ‘पकड़’ की राजनीति परवान पर — प्रतिभा नहीं, संबंधों ने दिलाई कुर्सी

 

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  • रणजी टीम के कोच बने वही, जिनकी पकड़ गेंद से ज्यादा ‘भाई’ पर मजबूत — मेहनत नहीं, मेल-जोल बना चयन का नया मंत्र

 

भूपेंद्र, कानपुर।

उत्तर प्रदेश क्रिकेट संघ (यूपीसीए) में एक बार फिर “पुराना खेल” लौट आया है — जहां टैलेंट नहीं, टच और पकड़ काम कर रही है। रणजी टीम के मुख्य और सहायक प्रशिक्षकों की ताज़ा नियुक्तियों ने यह साफ कर दिया है कि यहां अब भी मेहनत नहीं, मेल-जोल सफलता की सीढ़ी है।

सूत्रों के अनुसार, नियुक्तियों में योग्यता की जगह संबंधों की डोर ने बड़ी भूमिका निभाई। संघ के शीर्ष पदाधिकारियों से नज़दीकी रखने वाले एक प्रभावशाली व्यक्ति की सिफारिश पर दो ऐसे नामों को आगे बढ़ाया गया है, जो मैदान पर कम और संघ के गलियारों में ज़्यादा सक्रिय रहे हैं।

‘बारात किसी और ने सजाई, दूल्हा किसी और को बना दिया’

क्रिकेट जगत में यह कहावत इन नियुक्तियों पर सटीक बैठ रही है। मेहनती कोचों और अनुभवी खिलाड़ियों को नज़रअंदाज़ कर ऐसे लोगों को चुना गया है, जिनकी पहचान क्रिकेटिंग स्किल से नहीं बल्कि ‘नेटवर्किंग’ और ‘भाई पर पकड़’ से है।

सूत्र बताते हैं कि करीब 15 मैच खेलने वाले झांसी के एक रेलमैन को रणजी टीम का मुख्य कोच बना दिया गया, जबकि 65 मैच खेलने वाले ‘कानपुर नगर निगम की खोज’ कहलाने वाले पूर्व खिलाड़ी को सहायक कोच की कुर्सी मिल गई। दिलचस्प यह है कि इन दोनों का क्रिकेटिंग रिकॉर्ड तो साधारण है, लेकिन ‘संघ के भीतर की राजनीति में उनका स्कोरकार्ड शानदार’ बताया जा रहा है।

चयन प्रक्रिया बनी औपचारिकता, मेहनती कोचों का मनोबल टूटा

यूपीसीए में अंदरखाने यह चर्चा तेज है कि चयन प्रक्रिया अब सिर्फ “औपचारिकता” बनकर रह गई है। क्रिकेट समझ रखने वाले कई अनुभवी और योग्य नामों को दरकिनार कर दिया गया। इसके बजाय उन पर मेहरबानी हुई, जो सिफारिशों के कवच से लैस हैं। कई वरिष्ठ कोचों का कहना है कि “अब चयन का नया फार्मूला यही है — जिसकी पकड़ मजबूत, वही मैदान का मालिक।”

यूपीसीए फिर सवालों के घेरे में

कभी विकेट के पीछे झपट्टा मारने वाले खिलाड़ी अब संघ के भीतर ‘पकड़ की राजनीति’ से बाज़ी मार रहे हैं। यही वजह है कि यूपीसीए एक बार फिर पारदर्शिता और निष्पक्ष चयन को लेकर सवालों के घेरे में है।

जहां एक ओर खिलाड़ियों से ‘फिटनेस और परफॉर्मेंस’ की कसौटी पर खरा उतरने की उम्मीद की जाती है, वहीं संघ खुद ‘भाई-भतीजावाद’ की पिच पर बल्लेबाजी करता दिखाई दे रहा है।

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