खेल के साथ खिलवाड़, खिलाड़ी ही बना रेफरी, टेक्निकल इंचार्ज निकला टीम का कोच

 

 

  • कानपुर में आयोजित ताइक्वांडो प्रतियोगिता में तार-तार हुई खेल की मर्यादा, प्रतियोगिता के नाम पर बना तमाशा
  • आयोजकों का दावा, किसी ने लंच के समय रेफरी की कुर्सी पर बैठे छात्र की फोटो खींचकर किया दुष्प्रचार, नहीं हुई ऐसी कोई घटना

कानपुर। आमतौर पर खेलों में खेल भावना को सर्वोपरि रखा जाता है, लेकिन कुछ लोग निजी स्वार्थ के चलते खेल भावना के साथ ही खिलवाड़ करने से नहीं चूकते। खेल के साथ ऐसा ही खिलवाड़ कानपुर के एक प्रतिष्ठित स्कूल और प्रतिष्ठित संस्था केएसएस बी जोन के द्वारा आयोजित ताइक्वांडो प्रतियोगिता में भी देखने को मिला। सारे नियम कायदों को तोड़ते हुए यहां एक खिलाड़ी को ही रेफरी बना दिया गया और वो भी बिना यूनिफॉर्म के। खेल मजाक तब बन गया, जब ये खिलाड़ी कभी खेलता हुआ नजर आता तो कभी रेफरी के रोल में दिखाई देता। यही नहीं, एक स्कूल की टीम का कोच प्रतियोगिता का टेक्निकल इंचार्ज भी है। ताइक्वांडो खेल के नियमानुसार वो ही खिलाडी रेफरी पैनल मे शामिल हो सकता है जिसने 18 वर्ष की उम्र पार कर ली हो और साथ ही रेफरी की परीक्षा भी दी हो। साथ ही एक व्यक्ति दो पदों पर नहीं रह सकता, खासतौर पर जब उसकी टीम भी प्रतियोगिता में खेल रही हो। हालांकि, इस प्रतियोगिता में इन सारे नियमों को ताक पर रख दिया गया। खेल कुप्रबंधन के इस ताजा मामले से शहर के ताइक्वांडो प्लेयर्स और संघों में नाराजगी है। इसको लेकर केएसएस पदाधिकारियों से शिकायत किए जाने की तैयारी हो रही है। हालांकि, प्रतियोगिता के आयोजन से जुड़े सुनील ने बताया कि जो आरोप लगाए जा रहे हैं वो गलत हैं। किसी ने दुर्भावनावश लंच के समय जब छात्र बैठा हुआ था तो फोटो खींच ली और उसे रेफरी बनाए जाने के तौर पर प्रचारित कर दिया। प्रतियोगिता में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

खिलाड़ियों का हो रहा नुकसान
दरअसल, शहर में इस समय कई ताइक्वांडो संघ कार्य कर रहे हैं और खुद को असली और मान्यता प्राप्त संघ होने का दावा करते हैं। इनके बीच अधिक से अधिक प्रतियोगिताएं कराने के लिए होड़ सी मची है। इसका सर्वाधिक नुकसान स्कूलों और खिलाड़ियों को हो रहा है। ये स्कूलों में प्रतियोगिताएं कराने का दम तो भर देते हैं, लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण नियम कायदे को ताक पर रख देते हैं। जैसा मौजूदा प्रतियोगिता में हुआ। एक वरिष्ठ ताइक्वांडो पदाधिकारी ने बताया कि चूंकि संस्थान और स्कूलों को सही जानकारी नहीं होती, इसलिए गैर मान्यता प्राप्त संघ किसी को भी बुलाकर प्रतियोगिताएं करवा देते हैं। ये संघ खेलों को मनोरंजन का साधन बना देते हैं और स्तरहीन प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं जिसमें न प्रोफेशनल अप्रोच होती है और न ही कांप्टीशन की भावना। रेफरी की फीस न देनी पड़े, इसके लिए खिलाड़ियों को ही रेफरी की जिम्मेदारी दे दी जाती है। आयोजन की जिम्मेदारी संभाल रहे लोग अपनी टीमों को खिला देते हैं और पुरस्कारों की लालच में टीमों को जिताने के लिए चीटिंग भी करने से गुरेज नहीं करते। इसका नुकसान सिर्फ खिलाड़ियों को झेलना पड़ता है। उन्हें वो सुविधाएं और स्तर नहीं मिल पाता, जिसके वो योग्य हैं। स्कूलों में इस तरह की प्रतियोगिताओं का उद्देश्य खिलाड़ियों के हुनर को एक प्लेटफॉर्म देना होता है, ताकि वो अपनी स्किल को निखार सके और स्कूल के अलावा जिला स्तर और राज्य स्तर पर खुद को आगे ले जा सके। लेकिन जब निजी स्वार्थ के लिए खेल के साथ इस तरह का खिलवाड़ होगा तो खिलाड़ी आगे बढ़ने की बजाए खेल कुप्रबंधन का शिकार होकर सिर्फ मनोरंजन ही कर पाएंगे।

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