यूपीसीए की एजीएम में नियमों की अनदेखी पर सदस्यों ने ही उठाए सवाल

 

 

  • सचिव को पत्र लिखकर की गई नियमों को ताक पर रखने वालों पर सजा और जुर्माना लगाने की मांग
  • राजीव शुक्ला को बीसीसीआई में यूपीसीए के प्रतिनिधि के तौर पर भेजने पर भी मचा बवाल

कानपुर। यूपीसीए की इस साल की वार्षिक आम सभा 30 सितम्बर को आयोजित की गयी थी जिसके कुछ बिंदुओ पर चर्चा की गयी अब उन्ही् बिन्दुओं की शिकायत यूपीसीए के पूर्व सदस्यों ने संघ के सचिव अरविन्द श्रीवास्तव से की है। शिकायतकर्ताओं ने सचिव से शिकायती लहजे से पूछा है कि जब सोसाइटी के मानकों को ही ताख पर रख दिया गया हो और यूपीसीए के नियमो को अनदेखा किया गया तो क्या वह अपराध की श्रेणी में नही आना चाहिए।पत्र के माध्यम से पूछी गयी शिकायत में सचिव को उन सभी नियमों को अवगत करवाया गया है जिसके आधार पर जुर्माना या फिर सजा का प्रावधान तय किया जा सकता है। बशर्ते उसपर सुनवाई नियमों के अनुसार हो। एजीएम में मेंबरों की सूची जारी की गई थी उनमें कुछ मेंबर ऐसे है जोकि दूसरी स्पोर्ट्स एसोसिएशन के पदाधिकारी है परंतु अपने ही नियमो के विपरीत अभी तक हटाये नही गए है और वह सभी कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं। जोकि संघ के साथ ही नियम एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना है।

नियम ताक पर रखकर निदेशक राजीव शुक्ला को बनाया गया बीसीसीआई प्रतिनिधि 
शिकायत में सबसे पहले पूर्व सचिव राजीव शुक्ला के बारे में पूछा गया है कि जब वह संघ में सिर्फ आजीवन सदस्य है उनको अपनी पैरेंटल बॉडी बीसीसीआई में नामित करके पुनः भेजने का प्रस्ताव किस आधार पर पास किया गया है। बीसीसीआई के नामांकन में संघ का अध्यक्ष या सचिव का नामित होता है। एसोसिएशन में होने वाले सभी महत्व पूर्ण कार्यों की जानकारी इन्ही के पास होती है जोकि अपने प्रदेश के उत्थानन के बारे में भली भांति पुरजोर से अपनी बात रख सकते है। संघ में राजीव शुक्ला सिर्फ एक साधारण सदस्य है जो किसी भी मीटिंग या निर्णय में भाग लेने के अधिकारी नही है और न ही उनको किसी तरह की अथार्टी है अतः इनका जाना न्यायोचित नहीं है । यह ये दर्शाता है की राजीव शुक्ला अपने पद से उतरने के बाद भी ये अपना प्रभुत्व कायम रखना चाहते है इसी को रोकने के लिए उच्च न्यायालय ने 2018 में आदेश पारित किया था । अतः तुरंत अध्यक्ष या सचिव को संस्था के उत्थान के लिए नामित किया जाए। इस अति महत्वपूर्ण बैठक में MCA द्वारा की जा रही इंक्वायरी के बारे में कोई भी अपडेट सभी सदस्यों को नहीं बताया गया न ही चर्चा की गई। यूपीसीए पर विभिन्न कोर्ट में चल रहे केसों पर कोई जानकारी व चर्चा तक नहीं की गई जिससे प्रतीत होता है की आप सभी इससे अनभिज्ञ है या फिर दवाब के चलते सभी तथ्यों को छुपाने का प्रयास कर रहे है।

सर्वोच्च अदालत के आदेश भी नहीं माने 
सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर बीसीसीआई ने 2018 में आदेश पारित कर सभी क्रिकेट एसोसिएशन से नए नियम लागू कराए थे। जिसने कॉमिटी ऑफ एडमिनिस्ट्रेटर ने यूपीसीए जो एक कंपनी में रजिस्टर्ड है को अपने 28/8/2019 के आदेश में दर्शाया गया था कि जो एसोसियेशन कंपनी में रजिस्टर्ड है उनके डायरेक्टर एपेक्स के मेंबर होंगे। हालांकि, आश्वासन देने के बाद भी अब तक इस नियम का पालन नहीं किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय, बीसीसीआई के आदेश एवं यूपीसीए की नियमावली भी साफ कहती है कि एक व्यक्ति अधिकतम 9 साल के लिए लगातार पद पर आसीन रह सकता है परंतु कई निदेशक जो 2014 को नियुक्त हुए उनको 9 साल पूरे हो चुके हैं और उन सभी को आपने अपॉइंट करा दिया जो की दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। यूपीसीए की तरफ से अध्यक्ष या सचिव को नामित किया जाना चाहिए था जिससे प्रदेश की क्रिकेट को नया आयाम मिलता।

12 निदेशकों की नियुक्ति पर भी सवाल
संघ की ओर से MCA में जमा की गई नियमावली में साफ साफ लिखा है की एसोसिएशन की पारदर्शी कार्यप्रणाली के लिए हर माह 25 लाख से ऊपर के खर्चे यूपीसीए के ombadsman & Ethice अधिकारी का ईमेल और पता यूपीसीए की वेबसाइट दर्शाया जाएगा। परंतु आज तक उसका पालन नहीं किया जा रहा है। MCA की लिस्ट में यूपीसीए के सिर्फ 6 निदेशकों के नाम दर्ज हैं। लेकिन वेबसाइट पर 12 निदेशकों के नाम दर्ज दिखाई दे रहे हैं और सभी 12 निदेशक पिछले 2 वर्षों से यूपीसीए की सभी बोर्ड की बैठकों में निर्विरोध रूप से भाग ले रहे है, जबकि उन पर होने वाले खर्चे का बोझ भी यूपीसीए पर पड़ रहा है जो की एक दंडनीय अपराध है। शिकायतकर्ता ने सचिव से सभी बिंदुओ का जवाब 15 दिन के भीतर देने की मांग की है और साथ ही यह भी बताया है कि तय समय पर जवाब नही मिला तो संबंधित समक्ष फोरम पर जाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा जिसके हर्जाने खर्चे का जिम्‍मेदार संघ स्वयं होगा।

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