कानपुर में कुकुरमुत्तों की तरह खुली क्रिकेट एकेडमी, शिष्य नहीं क्लाइंट बने क्रिकेटर

 

 

संडे स्पेशल

सजय दीक्षित, कानपुर। 

आज के जमाने में भारत के अंदर क्रिकेट सबसे धनी खेल माना जाता है। इसलिए आजकल हर खिलाड़ी कोच बनने की राह पर चल पड़ा है। कुछ कोच तो ऐसे हैं जिन्होंने अपनी पूरी क्रिकेट भी नहीं खेली है और किसी भी छोटी जगह पर एक सीमेंट पिच बनाकर अकादमी खोल ली है। जो खिलाड़ी शहर के बाहर से एक सपना लेकर आते हैं वो इन एकेडमियों और कोच के जाल में फंस कर अपने चार-पांच साल खराब करते हैं और लौट जाते हैं। जिस तरह से कानपुर में पहले तीन या चार जगह क्रिकेट की कोचिंग दी जाती थी लेकिन बीच में कुछ ऐसे टूर्नामेंट होने लगे जिसमें अकादमी का फायदा होने लगा 5 फीट का टूर्नामेंट अंडर 14, अंडर 12 जैसी प्रतियोगिताएं आयोजित करके प्रति खिलाड़ी ₹400 लेकर और उनकी टीम बनाकर खिलाने लगे। इसमें उनकी अकैडमी जो टूर्नामेंट कराती है, अपने सारे बच्चे उसे प्रतियोगिता में मैनेज कर देती है और पेरेंट्स को एक छोटी सी खुशी प्रदान की जाती है कि उनका लाडला टीम में सेलेक्ट हो गया है लेकिन उसे टूर्नामेंट के परफॉर्मेंस का कोई आकलन जिला लेवल के स्तर पर नहीं किया जाता है। यह सिर्फ पैसा कमाने का धंधा लोगों ने बनाया है। पहले जब कोचिंग होती थी तो कोच उत्तर प्रदेश क्रिकेट टीम के लिए अंडर 15, अंडर 17, अंडर 22 और रणजी ट्रॉफी के लिए खिलाड़ी तैयार करते थे। अनकेनलीय पसीना बहाते थे, लेकिन आज इससे कोई मतलब नहीं है। कोच को अपने अकादमी में भीड़ बढ़ानी है और पैसा कमाना है। सोचने वाली बात है कि द्रोणाचार्य और आचरेकर जैसे कोच वाले इस देश में मौजूदा दौर के कोच सिर्फ पैसों के लिए अकादमी चला रहे हैं। उनका जमीर मार चुका है। वो बच्चो क्लाइंट के तौर पर देखते हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। दूसरों के बच्चों के साथ ऐसा धोखा करने वाले क्या अपने बच्चों के साथ भी इस व्यवहार कर सकते है। संभवत, नहीं। इसलिए कानपुर में क्रिकेट टीम तो बहुत हो गई है लेकिन टैलेंट कहीं भी नजर नहीं आता है। उसी का कारण है की एक समय कानपुर की तरफ से कम से कम सात खिलाड़ी रणजी ट्रॉफी जरूर खेलते थे और आज एक खिलाड़ी के लाले पड़े हुए हैं। लेकिन इसमें एक बात जरूर कहूंगा की हर कोचिंग ऐसी नहीं है। कुछ जगह पर अच्छे कोच हैं और वह अपने खिलाड़ियों को तैयार कर रहे हैं और उनका टैलेंट मैदान पर दिखता है। कम से कम पांच क्रिकेट कोचिंग कानपुर में है जो क्रिकेट खिलाड़ी तैयार करने में कोई कसर नहीं रखते हैं इसलिए खिलाड़ियों को भी सोचना चाहिए कि हमें कौन सी एकेडमी ज्वाइन करनी है और कौन सी नहीं।

लेखक कानपुर के पूर्व क्रिकेटर और कोच हैं।

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