मैदान में होने वाले हादसों में खिलाड़ियों की जान बचा सकता है सीपीआर

 

ग्रीनपार्क में चल रहे सेंट्रल कोचिंग कैंप में खिलाड़ियों को डॉ. प्रदीप टंडन ने सीपीआर प्रक्रिया के महत्व और इसके इस्तेमाल की दी जानकारी

कानपुर। ग्रीन पार्क स्टेडियम में चल रहे सेंट्रल कोचिंग कैंप में मंगलवार को विभिन्न शहरों से आए हुए खिलाड़ियाओ को सीपीआर ट्रेनिग दी गई। डॉ प्रदीप टंडन ने खिलाड़ियों को सीपीआर के महत्व के बारे में जानकारी दी। डॉ प्रदीप टंडन ने बताया कि आप सही सीपीआर प्रक्रिया से किसी की जान बचा सकते हैं। हार्ट अटैक आने पर किसी खिलाड़ी या अपनों की जान जाना आम हो गया है। हम देख रहे हैं कि आजकल जिम, ग्राउंड में या राह चलते कही पर भी लोगों को हार्ट अटैक आ जाता है। ऐसे में सीपीआर की प्रक्रिया को हमें और गहराइयों से जानने की जरूरत है।

क्या है सीपीआर?
सीपीआर यानी कार्डियो पल्मोनरी रिस्यूसिटेशन एक फर्स्ट एड प्रक्रिया है, जिसके बारे में हर खिलाड़ी को जरूर पता होना चाहिए। किसी विशेष परिस्थिति में मैदान के अंदर होने वाले हादसों में खिलाड़ी के घायल होने और इमरजेंसी में सीपीआर प्रक्रिया की मदद से खिलाड़ी या किसी की भी जान बचाई जा सकती है। सीपीआर में छाती को दबाने से सांस लेने में मदद मिलती है। आपको सीपीआर जैसी आवश्यक प्रक्रिया का पता होना बहुत जरूरी है।

डॉ. प्रदीप टंडन ने खुद सीपीआर करके दिखाया।

 

क्या है प्रक्रिया?
रेस्क्यू ब्रेथ : मुंह से सांस देने से भी इंसान के फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाई जा सकती है।
चेस्ट कंप्रेशन : इसमें छाती को जोर-जोर से दबाया जाता है, जिससे शरीर में ब्लड फ्लो में सुधार होता है। सांस लेने में मदद मिलती है

सीपीआर क्रिया करने में सबसे पहले पीड़ित को किसी ठोस जगह पर लिटा दिया जाता है और प्राथमिक उपचार देने वाला व्यक्ति उसके पास घुटनों के बल बैठ जाता है। उसकी नाक और गला चेक कर ये सुनिश्चित किया जाता है कि उसे सांस लेने में कोई रुकावट तो नहीं है। जीभ अगर पलट गयी है तो उसे सही जगह पर उंगलियों के सहारे लाया जाता है।

सीपीआर में मुख्य रुप से दो काम किए जाते हैं। पहला छाती को दबाना और दूसरा मुंह से सांस देना जिसे माउथ टु माउथ रेस्पिरेशन कहते हैं। पहली प्रक्रिया में पीड़ित के सीने के बीचों-बीच हथेली रखकर पंपिंग करते हुए दबाया जाता है। एक से दो बार ऐसा करने से धड़कनें फिर से शुरू हो जाएंगी। पंपिंग करते समय दूसरे हाथ को पहले हाथ के ऊपर रख कर उंगलियो से बांध लें अपने हाथ और कोहनी को सीधा रखें।

अगर पम्पिंग करने से भी सांस नहीं आती और धड़कने शुरू नहीं होतीं तो पम्पिंग के साथ मरीज को कृत्रिम सांस देने की कोशिश की जाती है। ऐसा करने के लिए हथेली से छाती को 1 -2 इंच दबाएं, ऐसा प्रति मिनट में 100 बार करें। सीपीआर में दबाव और कृत्रिम सांस का एक खास अनुपात होता है। 30 बार छाती पर दबाव बनाया जाता है तो दो बार कृत्रिम सांस दी जाती है। छाती पर दबाव और कृत्रिम साँस देने का अनुपात 30 :02 का होना चाहिए।

कृत्रिम सांस देते समय मरीज की नाक को दो उंगलियों से दबाकर मुंह से सांस दी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि नाक बंद होने पर ही मुंह से दी गयी सांस फेफड़ों तक पहुंच पाती है।

सांस देते समय ये ध्यान रखना है कि फर्स्ट एड देने वाला व्यक्ति लंबी सांस लेकर मरीज के मुंह से मुंह चिपकाए और धीरे धीरे सांस छोड़ें। ऐसा करने से मरीज के फेफड़ों में हवा भर जाएगी। इस प्रक्रिया में इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि जब कृत्रिम सांस दी जा रही है तो मरीज की छाती ऊपर नीचे हो रही है या नहीं। ये प्रक्रिया तब तक चलने देनी है जब तक पीड़ित खुद से सांस न लेने लगे। जब मरीज खुद से सांस लेने लगे, तब ये प्रकिया रोकनी होती है।

सीपीआर अगर किसी छोटे बच्चे को देनी है तो विधि में थोड़ा सा बदलाव होता है। बच्चों की हड्डियों की शक्ति बहुत कम होती है इसलिए दबाव का विशेष ध्यान रखा जाता है। अगर 1 साल से कम बच्चों के लिए सीपीआर देना हो तो सीपीआर देते वक़्त ध्यान रखे 2 या 3 उंगलियों से ही छाती पर दबाव डालें और छाती पर दबाव और कृत्रिम सांस देंने का अनुपात 30 :02 ही रखें।

दिल का दौरा पड़ने पर पहले एक घंटे को गोल्डन ऑवर माना जाता है। इसी गोल्डन ऑवर में हम मरीज की जान बचा सकते है। कभी कभी एंबुलेंस या मेडिकल सुविधा किसी कारण उपलब्ध नहीं होती है। ऐसे समय में सीपीआर किसी भी पीड़ित के लिए संजीवनी का काम कर सकता है।

दरअसल सीपीआर में हम सांस चलाने के काम और खून के बहाव को लगातार जारी रखने की कोशिश करते हैं। अगर किसी पीड़ित को 3-5 मिनट तक सांस नहीं आती तो उसके ब्रेन सेल मृत होना शुरु हो जाते हैं। अगर किसी पीड़ित को 10 मिनट तक सांस नहीं आ रही हो और प्राथमिक उपचार के तहत हम उसे कृत्रिम सांस न दे पाएं तो मरीज के बचने की संभावना बहुत कम हो जाती है।

इस तरह आप किसी ऐसे व्यक्ति की जान बचा सकते हैं जो दम घुटने, पानी में डूबने, दिल का दौरा पड़ने की वजह से अपनी धड़कने खो चुका है। इस दौरान कुछ सावधानियां भी बरतनी है। जैसे इस दौरान मरीज को अकेला बिल्कुल नहीं छोडना चाहिए।

खेल के दौरान होने वाले हादसों में सतर्कता की भी दी जानकारी।

 

अनुशासन के साथ आगे बढ़ें खिलाड़ीः मुद्रिका पाठक
डिप्डी डायरेक्टर स्पोर्ट्स मुद्रिका पाठक ने भी इस अवसर पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि सही अनुशासन द्वारा आप बेहतर खिलाड़ी बन सकते हैं। खिलाड़ी को हमेशा पॉजिटिव रूप में रहना चाहिए जीत हासिल का लक्ष्य निर्धारित करके के अभ्यास की ओर अग्रसित होना चाहिए. फिजियोथैरेपिस्ट
डॉ स्टेनली ब्राउन ने बताया खिलाड़ी को अनावश्यक दवाइयों से दूर रहना चाहिए, फिटनेस के लिए स्ट्रेंथिंग एक्सरसाइज, स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज को अपने जीवन शैली मे रूटीन वे में करते रहना चाहिए। सही खान पान भी आपको फिट रखता है और हार्ट अटैक से बचाता है। मौके पर उप क्रीड़ा अधिकारी अमित पाल द्वारा धन्यवाद प्रेषित किया गया। अनुराग श्रीवास्तव, सुनील कुमार, शाहिद खां, मनोज बाबू, किशन लाल समेत समस्त स्टॉफ मौजूद रहा।

 

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