साल 2015 में जब विराट कोहली ने ऑस्ट्रेलिया में एक ही टेस्ट शृंखला में चार शतक लगाए थे तो सिडनी मॉर्निंग हेरल्ड ने उनकी प्रशस्ति में लिखा था- “उनका सिर पूरे समय इतना स्थिर रहा, मानो किसी ने उसे धागे के ज़रिये क्रीज़ से बाँध रखा हो!”
स्थिर सिर- यह कोहली की बल्लेबाज़ी का प्राथमिक आयाम है। वो कभी अपना ‘शेप’ नहीं गँवाते, बेडौल नहीं होते, उनका सिर हवा में नहीं चला जाता- जैसे छक्का लगाते समय बहुतेरों का चला जाता है। सिर को स्थिर रखो, फ्रंटफ़ुट आगे बढ़ाओ, गेंद को नाक के नीचे लाकर खेलो- यह शास्त्रीय बल्लेबाज़ी का प्राथमिक-नियम है। विराट कोहली प्रॉपर क्रिकेटिंग शॉट्स खेलकर रन बनाते हैं, स्लॉग नहीं करते।
बड़ी मज़बूत कलाइयाँ हैं, जिनकी सिफ़त उनके ड्राइव और फ्लिक में कलियों की तरह खिल उठती हैं। इससे उनकी बल्लेबाज़ी में एक फ़्लो चला आता है, एक रिदम। वे गेंद के बल्ले पर आने की प्रतीक्षा नहीं करते- रोहित शर्मा की तरह। उसे पंच नहीं करते- शुभमन गिल के शॉर्ट आर्म जैब की तरह। वे आगे बढ़कर गेंद से मिलते हैं- यह तपाक से जा मिलने का आत्मविश्वास उनकी शख्सियत से लेकर उनके खेल में शुरू से ही रहा है।
तराशे हुए बदन वाला ऐसा कोई बल्लेबाज़ जब लय में खेलता है तो चलता-फिरता ताज महल मालूम होता है! विराट कोहली वैसे ही सम्पूर्ण बल्लेबाज़ हैं।
भारत में रन-मशीनों की सुपरिचित परम्परा रही है- दस हज़ारी सुनील गावस्कर से, शतकवीर सचिन तेंडुलकर तक होते हुए, अब पीछा करके मुकाम तक पहुँचने वाले चेसर विराट कोहली तक।
48वाँ शतक पूरा किया। दो और बना लें तो एक दिवसीय मैचों में शतकों का अर्धशतक पूरा करने पहले खिलाड़ी बन जावेंगे। 71वें अंतरराष्ट्रीय शतक के लिए तीन साल इंतज़ार किया था, तब से 45 पारियों में सात शतक लगा चुके हैं।
मछली तैरना कभी नहीं भूलती, नींद में भी तैर सकती है। विराट के लिए शतकें लगाना वैसा ही बेभूला हुनर है। जैसे कोई रात को नींद से उठकर चौके से पानी पी आता हो, वैसे ही वे स्कोरकार्ड पर सैकड़ा टाँग आते हैं। ब्रिलियंट बैट्समैन!
साभार: समर अनार्य की वाल से