-कोच राहुल द्रविड़ के साथ विराट कोहली ने की बातचीत
विराट कोहली ने अहमदाबाद में नवंबर 2019 के बाद पहला टेस्ट शतक जड़ा। अपने 28वे शतक के लिए प्लेयर ऑफ द मैच खिताब जीतने के बाद उन्होंने ‘बीसीसीआई टीवी’ पर मुख्य कोच राहुल द्रविड़ से बात की। उन्होंने इस बातचीत में बताया कि कैसे क्षमता के बावजूद जब वो शतक नहीं बना पा रहे थे तो वह चिंतित थे और उन्हें यह बात हर दिन खाए जा रही थी। पेश है उस वार्तालाप के मुख्य अंश हैं।
द्रविड़ : हम मैदान पर दो दिन तक थे और विकेट समय के साथ बल्लेबाजी के लिए थोड़ी सी चुनौतीपूर्ण लग रही थी। इस से बल्लेबाजी में धैर्य के साथ कौशल की भी परीक्षा थी। आपने इसको कैसे संभाला?
कोहली : सबसे पहले तो आपकी प्रशंसा के लिए बहुत शुक्रिया, राहुल भाई। माइंडसेट के मामले में इस टेस्ट से पहले भी मैं ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ अच्छा खेल रहा था। सच पूछिए तो यह विकेट बल्लेबाजी के लिए काफी बढ़िया थी, बावजूद इसके ऑस्ट्रेलिया ने अच्छी गेंदबाजी की और जितनी मदद थी उसका फायदा उठाया। मिचेल स्टार्क की गेंदबाजी से नेथन लायन और अन्य स्पिनर के लिए रफ बन गया था। उन्होंने उसका फायदा उठाया और 7-2 की फील्ड से गेंदबाजी की, जिसके चलते मुझे धीरज से काम लेना पड़ा। मुझे अपने डिफेंस पर विश्वास रखना पड़ा और यह टेस्ट बल्लेबाजी की मेरी बुनियाद भी है। मैं अच्छा डिफ़ेंड करता हूं। ऐसे में मुझे पता होता है कि मैं लूज गेंद को मार सकता हूं। यहां आउटफील्ड धीमा था, गेंद काफी मुलायम हो गई थी और उनके गेंदबाज बहुत किफायती गेंदबाजी कर रहे थे।
एक चीज जिससे मुझे काफ़ी आश्वासन मिला था, वह यह था कि मैं एक और दो रन भागते हुए शतक बनाने में संतुष्ट रहता हूं। मैं चार या पांच सेशन बल्लेबाजी कर सकता हूं। जब यह मेरे मन में होता है तो मैं रिलैक्स करके बल्लेबाजी करता हूं क्योंकि मैं किसी भी शैली के साथ खेल लेता हूं। अगर मेरे मन में होता कि मुझे तीन ही सेशन मिलेंगे तो मैं ज्यादा व्याकुल होता और इतने इत्मिनान से नहीं खेलता।
अब तक जिसने मुझे या आप जैसे खिलाड़ियों को बल्लेबाजी करते देखा है, बल्लेबाजी में फिटनेस अहम है। अगर आपको पांच-छह सेशन की बल्लेबाजी करनी है तो आपको शारीरिक रूप से तैयार रहना पड़ता है। मैं एक सेशन में 30 रन बनाकर भी खुश हूं क्योंकि मुझे पता है रन बाद में बनेंगे। नहीं भी बने तो मैं छह सेशन खेलकर 150 रन बनाने की क्षमता रखता हूं। इस संदर्भ में तैयारी जरूरी है और यह आप दो या तीन महीनों में ऐसा नहीं कर सकते। इसके पीछे पिछले सात-आठ सालों की लगातार मेहनत है। इन परिस्थितियों में यही काम आता है।
द्रविड़ : कभी कभी कोच के लिए यह निराशाजनक होता है जब कुछ खिलाड़ी कहते हैं कि ‘मैं तो एक ही ढंग से खेल सकता हूं।’ इस परिपेक्ष में आपका यह कहना कि आप किसी भी शैली में खेल सकते हैं, काफी रोचक है। आप पर्थ में शतक लगा चुके हैं और इंग्लैंड में भी। क्या आप हमेशा एक ढंग से खेल सकते हैं?
कोहली : जी नहीं, आपको हमेशा अपने सामने की परिस्थितियों के हिसाब से अपनी गेम को बदलना होता है। शायद यही वजह है कि मैं इतने समय से सभी प्रारूप खेल सका हूं। यह गेम के हिसाब से खेल को बदलने की ताकत शारीरिक फिटनेस की देन भी है। आप मानसिक तौर पर अलग फॉर्मैट में अलग शैली से खेल सकते हैं लेकिन आप सफल तभी होंगे जब आपका शरीर आपका साथ दे। मिसाल के तौर पर, इस टेस्ट मैच में रन गति को बढ़ाने के लिए मैं खुद को लगातार छह-सात ओवरों तक हर ओवर में छह बार दो रन भागने के लिए खुद को बैक करता। हर बार डीप मिडविकेट में हवा में मारने की जरूरत नहीं क्योंकि इससे आप आउट भी हो सकते हैं।
मैं इसी वजह से मुश्किल पिचों और परिस्थितियों में सफल रहा हूं, क्योंकि मैं तेज रनिंग के साथ-साथ बड़े शॉट भी लगा सकता हूं। इसके लिए आपको ऑलराउंड फिटनेस की जरूरत होती है। इसके लिए आपको रोज मेहनत करनी पड़ती है। आप कठिन परिस्थिति में बड़ा शॉट मारने के प्रयास में अपनी टीम को मुसीबत में नहीं डाल सकते। मैं हमेशा यही सोचता हूं कि मैं बेहतर तैयारी कैसे करूं।
द्रविड़ : मेरे लिए टीम प्लेयर की परिभाषा यही है। जो टीम की जरूरत के हिसाब से अपने कौशल में बढ़ोतरी करता रहे। हम क्रिकेट से सबसे जबरदस्त हिटर की बात कर रहे हैं, जो कभी भी निकलकर बड़ा छक्का मार सकते थे। फिर भी परिस्थिति के हिसाब से खुद पर काबू करना एक चैंपियन क्रिकेटर की निशानी है। एक चीज बताएं, आपकी बड़े शतक लगाने की आदत सी रही है। पिछले कुछ समय में कोविड के चलते कुछ क्रिकेट भी कम हुआ है, लेकिन फिर भी क्या शतक के बिना यह समय आपके लिए कठिन रहा है?
कोहली : अगर इस बात से मैं थोड़ा सा परेशान रहा हूं, तो यह खामी मुझमें ही है। देखिए, शतक मारने की व्याकुलता स्वाभाविक है और हम सभी ऐसे दौर से गुजरते हैं। मैं 40 और 45 के स्कोर से कभी संतुष्ट नहीं रहा हूं। लेकिन ऐसा नहीं है कि सुर्खियों में विराट कोहली का नाम आना जरूरी है। जब मैं 40 पर नाबाद रहता हूं तो मुझे पता होता है कि यहां से मैं इसे 150 में परिवर्तित कर सकता हूं और टीम की मदद कर सकता हूं। मुझे यही बात खाए जा रही थी कि मैं टीम के लिए बड़ा स्कोर क्यों नहीं बना पा रहा? मैं कठिन परिस्थितियों में टीम के लिए परफॉर्म करता था और अचानक ऐसा क्यों नहीं हो रहा था?
मैंने कभी व्यक्तिगत उपलब्धि पर जोर नहीं दिया है। लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं निरंतरता से शतक कैसे लगाता हूं। लेकिन मैं हमेशा कहता हूं कि मैं टीम के लिए ज्यादा से ज्यादा लंबे समय तक क्रीज में टिकना चाहता हूं और ऐसे में माइलस्टोन बन ही जाते हैं। पर सच कहूं तो [शतक का सूखा] जटिल हो जाता है, क्योंकि होटल रूम से निकलते ही कोई भी आपसे मिले, लिफ्ट में या बस के चालक, आपसे सिर्फ शतक मांगते हैं।
यह आपके मन को विचलित कर सकता है लेकिन इतने लंबे समय तक खेलने का यह एक स्वाभाविक नतीजा है। आपको इन छोटी चुनौतियों को स्वीकारना होता है और जब सब कुछ सही बैठता है, जैसे इस गेम में हुआ भी, तो आपको काफ़ी ताजगी मिलती है। मैं खुश हूं कि यह ठीक विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फ़ाइनल से पहले आया है और मैं इस मैच के लिए मैं रिलैक्स करते हुए, क्रिकेट का लुत्फ उठाते हुए तैयार रहूंगा।